सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव को लगाई फटकार,मीडिया ने किया ऐसा सवाल भड़क गया बॉडीगार्ड

Apr 3, 2024 - 08:44
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सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव को लगाई फटकार,मीडिया ने किया ऐसा सवाल भड़क गया बॉडीगार्ड

DELHI : योग की दुनिया के गुरु कहे जाने वाले बाबा रामदेव और उनके साथी आचार्य बालकृष्ण जो पतंजलि आयुर्वेद के एमडी भी हैं. ये दोनों आज यानी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. इस दौरान कोर्ट ने दोनों को फटकार लगाई. वहीं बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने आदेश का उल्लंघन करने के लिए कोर्ट से बिना शर्त माफी भी मांगी.


योग की दुनिया के गुरु कहे जाने वाले बाबा रामदेव और उनके साथी आचार्य बालकृष्ण जो पतंजलि आयुर्वेद के एमडी भी हैं. ये दोनों आज यानी मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. इस दौरान कोर्ट ने दोनों को फटकार लगाई. आदेश का उल्लंघन करने पर बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने कोर्ट से बिना शर्त माफी भी मांगी.

भ्रामक विज्ञापन मामले में बाबा रामदेव को आज यानी 2 अप्रैल को कोर्ट में पेश होना पड़ा. दरअसल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस पूरे मामले में बाबा रामदेव व्यक्तिगत रूप से पेश होने की जारी याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. इस दौरान उन्होंने आदेश का उल्लंघन करने के लिए कोर्ट से बिना शर्त माफी भी मांगी. बताया जा रहा है कि कोर्ट ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई है. इन सभी मामलों पर अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होनी है.

जानकारी मिल रही है कि सुप्रीम कोर्ट परिसर में बाबा रामदेव के बॉडीगार्ड ने पत्रकारों के साथ बदसलूकी की है. दरअसल, फटकार सुनने के बाद जब वह कोर्ट से बाहर निकल रहे थे तो मीडियाकर्मियों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था. जब उनसे पूछताछ की गई तो उनके अंगरक्षकों ने पत्रकारों के कैमरे और मोबाइल फोन छीनने शुरू कर दिए. इसके साथ ही वह बदसलूकी पर उतर आया।

 जिसके बाद ये मामला सोशल मीडिया पर काफी तेजी से फैल रहा है.
पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कंपनी के प्रबंध निदेशक 'आचार्य' बालकृष्ण और सह-संस्थापक रामदेव को फटकार लगाई है। 19 मार्च को बालकृष्ण और रामदेव को अदालत की अवमानना ​​के मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया गया था.


ये दोनों 2 अप्रैल को कोर्ट में पेश भी हुए थे. कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट नहीं माना. कोर्ट ने कहा कि वह रामदेव के जवाब से संतुष्ट नहीं है, उन्हें समय दिया गया है. कोर्ट ने रामदेव से कहा कि अगर आपको माफी मांगनी ही थी तो पहले मांगनी चाहिए थी. कोर्ट पतंजलि के हलफनामे से संतुष्ट नजर नहीं आया.

अब कोर्ट ने भारत सरकार के आयुष मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार के संपदा विभाग को भी नोटिस जारी किया है. दोनों से एक सप्ताह के अंदर जवाब मांगा गया है. इस मामले में अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी.इससे पहले 27 फरवरी को कोर्ट ने पतंजलि के स्वास्थ्य संबंधी विज्ञापनों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा था कि कंपनी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए.

कोर्ट ने साफ कहा था कि पतंजलि अपने विज्ञापनों से पूरे देश को गुमराह कर रही है. कोर्ट ने थायराइड, अस्थमा, ग्लूकोमा जैसी बीमारियों से 'स्थायी राहत और इलाज' का दावा करने वाले पतंजलि के विज्ञापनों को भ्रामक करार दिया था। अवमानना ​​नोटिस के बाद 19 मार्च को कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण दोनों को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था.

2 अप्रैल को जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच के सामने सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को पता चला कि रामदेव का हलफनामा रिकॉर्ड पर मौजूद नहीं है. पतंजलि की ओर से वरिष्ठ वकील बलबीर सिंह ने कहा कि उनके मुवक्किल आज खुद कोर्ट में मौजूद हैं और माफी मांगने को तैयार हैं. रामदेव और बालकृष्ण मौजूद थे.रामदेव की ओर से उनके वकील ने हाथ जोड़कर माफी मांगी. माफ़ी की अपील की. इस पर पीठ ने रामदेव को फटकार लगाते हुए कहा कि उन्हें कोर्ट के आदेश को गंभीरता से लेना चाहिए. पीठ ने इस तरह की माफी को 'लिप सर्विस' करार दिया और कहा कि उन्हें विस्तृत हलफनामा दाखिल करना होगा. कोर्ट ने कहा कि निर्देशों का पालन नहीं करने पर कार्रवाई के लिए तैयार रहें.

इस पर जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि बालकृष्ण इस तरीके से “अनजान बनने का बहाना” नहीं कर सकते हैं और आपके मीडिया विभाग को कोई “अलग द्वीप” नहीं माना जा सकता है. जस्टिस कोहली ने पतंजलि से सवाल किया कि जब एक बार कोर्ट को अंडरटेकिंग दी गई, तो ये किसकी ड्यूटी है कि वो मैसेज को नीचे तक पहुंचाएं?

इस पर पतंजलि की तरफ से एक और वकील विपिन सांघी सहमत हुए. कहा कि उनकी तरफ से गलती हुई और माफी भी मांग ली. इस पर जस्टिस कोहली ने जवाब दिया,

“आपकी माफी इस कोर्ट के लिए काफी नहीं है. ये सुप्रीम कोर्ट को दी गई अंडरटेकिंग का खुला उल्लंघन है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है. सिर्फ ये कहना कि माफ कर दें, काफी नहीं है. हम भी कह सकते हैं कि हमें माफ कर दें. हम इस तरह की दलील को स्वीकार नहीं करेंगे… क्योंकि आपका मीडिया विभाग कोई अलग विभाग नहीं है. जिसे पता नहीं रहेगा कि कोर्ट की कार्यवाही में क्या हो रहा है.”

कोर्ट के आदेश के बाद उल्लंघन

पतंजलि के खिलाफ ये कार्रवाई इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की याचिका पर हो रही है. 17 अगस्त 2022 को IMA ने याचिका में दावा किया था कि पतंजलि गलत दावों के साथ विज्ञापन चलाती है. इतना ही नहीं, IMA ने आरोप लगाए थे कि पतंजलि कोविड वैक्सीन के बारे में गलत सूचना फैला रही है. कहा था कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन, इसके इलाज के संदर्भ में एलोपैथी के खिलाफ नेगेटिव प्रचार किया है. ये भी कहा कि पतंजलि ने भ्रामक विज्ञापन देकर आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया है।

इस याचिका पर 21 नवंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पतंजलि को इस तरह के भ्रामक दावों वाले विज्ञापन तुरंत बंद करने होंगे. नहीं बंद किए गए तो हर झूठे दावे पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. इसके कुछ दिन बाद IMA फिर कोर्ट पहुंचा।

दिसंबर 2023 और जनवरी 2024 में पतंजलि की ओर से प्रिंट मीडिया में दिए गए कुछ विज्ञापन कोर्ट के सामने रखे. इसके अलावा 22 नवंबर 2023 को – यानी कोर्ट की पिछली सुनवाई के एक दिन बाद ही- बालकृष्ण और रामदेव की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में भी IMA ने सुप्रीम कोर्ट को बताया. आरोप लगाया कि पतंजलि ने इन विज्ञापनों में डायबिटीज और अस्थमा को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का भ्रामक दावा किया था।

इन सब पर आज जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि कोर्ट के आदेश के 24 घंटे के भीतर आपका प्रेस कॉन्फ्रेंस करना, विज्ञापन छापना बताता है कि आपके मन में कोर्ट के प्रति कैसी भावना है. इस पर वकील बलबीर सिंह ने कहा कि उनसे गलती हुई है और वे इससे मुंह नहीं मोड़ रहे या छिपा नहीं रहे, बल्कि इसे स्वीकारते हैं और बिना शर्त माफी मांगते हैं।

हालांकि जस्टिस कोहली ने कहा कि कंपनी के को-फाउंडर होने के बावजूद कोर्ट के आदेश के बारे में रामदेव को नहीं पता था, ये विश्वास करना असंभव है. कोर्ट के आदेश के 24 घंटे के भीतर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पर उन्होंने कहा कि यह दिखाता है कि आपको आदेश के बारे में पता था और इसके बावजूद आपने इसका उल्लंघन किया।

पतंजलि ने झूठ भी बोला!’

सुनवाई के दौरान बेंच ने माना कि पतंजलि और रामदेव ने झूठे बयान भी दिए. जस्टिस अमानुल्ला ने कहा,

“अब हम इस झूठ का भी नोट लेंगे. मिस्टर बलबीर, सभी तरह के परिणामों के लिए तैयार रहिए. आप दोनों (बालकृष्ण और रामदेव) के खिलाफ झूठे बयान देने का केस भी चलेगा… हम पीछे नहीं छिप सकते हैं, हम अपने पत्ते खोल रहे हैं. इस कार्यवाही के दौरान आपने झूठ बोला है.”

जस्टिस कोहली ने रामदेव के वकील से कहा कि आपने कहा था कि डॉक्यूमेंट्स अटैच कर दिए गए हैं, लेकिन ये डॉक्यूमेंट्स बाद में बनाए गए. ये झूठे बयान का साफ मामला बनता है. उन्होंने कहा कि कोर्ट आपके लिए दरवाजे बंद नहीं कर रहा है, लेकिन उसकी सारी चीजों पर नजर है।

एक और दलील पर कोर्ट ने आपत्ति जताई

27 फरवरी की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ड्रग्स और मैजिक रेमेडीज़ (आपत्तिजनक विज्ञापन) एक्ट 1954 के तहत पतंजलि के विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश दिया था. ये एक्ट ‘जादुई’ गुणों का दावा करने वाली दवाओं, इलाज या इनके विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है. अगर कोई संस्थान नियम नहीं मानता तो ये एक संज्ञेय अपराध माना जाता है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट कहती है कि पतंजलि के एमडी की तरफ से हलफनामे में कहा गया कि ये कानून ‘पुराना’ हो चुका है. एमडी ने कहा कि ये कानून तब लागू हुआ था जब आयुर्वेदिक दवाओं को लेकर वैज्ञानिक साक्ष्यों का अभाव था. ये भी बताया कि कंपनी ने आयुर्वेद में इस्तेमाल होने वाले “प्रमाणित वैज्ञानिक डेटा” का इस्तेमाल किया.

इस पर जस्टिस हिमा कोहली ने कंपनी को जवाब दिया,

“क्या हमें मान लेना चाहिए कि वे सभी कानून जो पुराने हो चुके हैं, वे लागू नहीं होने चाहिए. इस समय हमें आश्चर्य हो रहा है कि जब एक कानून है, जो इस फील्ड को रेगुलेट करता है, तो आप इसका उल्लंघन कैसे कर सकते हैं? आपके सभी विज्ञापन इस कानून का उल्लंघन कर रहे हैं।

इस पर पतंजलि के वकील विपिन सांघी ने बचाव करते हुए फिर कहा कि ये कानून 1954 में बना था और तब से विज्ञान काफी आगे बढ़ गया है. हालांकि जस्टिस कोहली ने उन्हें फिर सुना दिया और कहा कि क्या आपने कानून में संशोधन करने के लिए संबंधित मंत्रालय से संपर्क किया।

सांघी ने एक बार फिर बचाव करने की कोशिश की और कहा कि उन्होंने अपने ट्रायल किए हैं. हालांकि कोर्ट किसी भी तरह की दलीलों से सहमत नहीं हुआ।

इस एक्ट की धारा-4 कहती है कि कोई भी व्यक्ति ऐसे किसी भी विज्ञापन के प्रकाशन में शामिल नहीं होगा, जिसमें किसी दवा के बारे में गलत या भ्रामक जानकारी दी जा रही है।

पिछली सुनवाई में इस एक्ट का जिक्र करते हुए कोर्ट ने सरकार से पूछा भी था कि आपने पतंजलि पर क्या कार्रवाई की. केंद्र सरकार की तरफ से जवाब आया था कि इस बारे में वो डेटा इकट्ठा कर रही है. कोर्ट ने इस जवाब पर नाराजगी जताई थी और कंपनी के विज्ञापनों पर नजर रखने के लिए कहा था. अब एक बार फिर कोर्ट ने आयूष मंत्रालय को नोटिस जारी किया है।

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